हम मजबूर हैं
हम मजबूर हैं

 हम मजबूर हैं  

( Hum majboor hai )

 

 

साहब! हम मजदूर हैं
इसीलिए तो मजबूर हैं
सिर पर बोझा रख कर
खाली पेट,पानी पीकर
हजारों मील घर से दूर
गोद में बच्चों को लेकर
अनजान राहों पर चलने को।

 

बेबस हैं हम,लाचार हैं हम
आए थे काम की तलाश में
पर,इस #Lockdown में
न घर के रहे,न बाहर के
बीच में फ़ँस कर रह गए
पैदल ही चलना पड़ा
सोच कर एक दिन
पहुंच ही जाएंगे अपने घर।।

 

लम्बा है रस्ता, चलते जाना है
अपने बच्चों की खातिर
भूखे-प्यासे और बदहाल
सो जाते हैं थक कर
रेल की पटरी या फुटपाथ
या सड़क के किनारे पर
बेसुध होकर।

लेखक :सन्दीप चौबारा
( फतेहाबाद)
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