हे सरकार! कुछ तो करो
हे सरकार! कुछ तो करो

   हे सरकार ! कुछ तो करो 

( Hey sarkar kuch to karo )

 

हे सरकार! कुछ तो करो
क्यूँ छोड़ दिया मरने को
सड़कों और पटरियों पर
दर-दर की ठोकरें खाने को
खाने को तरसने को।

हे सरकार! कुछ तो करो
क्या बीत रही है उन
गर्भवती और नव माताओं पर
सड़कों पर जन्म देते हुए
कितनी पीडाओं को सहन करती है
सड़क या पटरी के किनारे
भीषण गर्मी में।

हे सरकार! कुछ तो करो
उन पैदल चलती माओं के लिए
जो भूखी -प्यासी नंगे पैरों
गोद में उठा चलती बच्चे को
कैसे सहन करती है दर्द को
बीच राहों पर ।

हे सरकार! कुछ तो करो
ये ओर कुछ नहीं चाहते
माँगते हैं बस दो जून का खाना
चाहते हैं वो घर जाना अपने
बस इतना कर दो हे सरकार!
पहुंचा दो अब उनको
अपने घर में।।

 

कवि: सन्दीप चौबारा

 फतेहाबाद

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