बातें रायेगानी हो रही है
बातें रायेगानी हो रही है

बातें रायेगानी हो रही है

( Baaten rayegani ho rahi hai )

 

में उसके क़ुरबत में

और ज़माने मुझसे दूर हो रही है

 

जहाँ से दुनिया फ़ना होती है

वहाँ से मेरी कहानी सुरु होती है

 

सारे जहां में वस्वसे उड़ रही है

शम्स की तलब में देखो लोग किस क़दर बौखला रहे है

 

हम तुम की बातें रायेगानी हो रही है

कई तर्तीबो से ये कोशिश चल रही है

 

जुदा हुए आलम को मिलाने की कोशिश चल रही है

जब से मुसव्विर की हाथों से कलम चल रही है

 

नफ़्स से जिस्म का रिस्ता कैसा है

‘अनंत’ बता तू, खुद से ज़ीस्त-ए-जुदाई कैसा है

 

पूछते है लोग रास्तो की दुरुस्ती

और में खुद नहीं जानता के ये रस्ता कैसा है

 

लोग मंजिल को तकते रहते है

में रस्तो में खोया रहता हूँ

 

जब से तन्हा कदम को रस्तो की मुक़द्दर से जोड़ा है

मुसलसल में चलता गया हूँ

 

रस्ता और और बढ़ता गया है

इतना मगर में जानता हूँ

 

जब भी मुलाक़ात हो आइनो से

खुदको में मुक़म्मल पाता हूँ

 

वो और में जो कभी एक नहीं हुए

दुनिया इसका कीमत अता कर रहा है

 

आस्ति में एक गहरी खामोसी छा रहा है

हिज्र मुक़र्रर मुझसे गले लगे जा रहा है

 

‘अनंत’ से ना काम हुआ, ना इश्क़ हुआ

हम बस राह में रहगुज़र की तरह रहे

 

ना रस्ता के हो सके, ना उनके हो सके

अब बस हमारी बातें रायेगानी हो रही है

 

 

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शायर: स्वामी ध्यान अनंता

 

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