गीत लिखे हजार मगर
( Geet likhe hajar magar )
गीत लिखे हजार मगर गाया ना जा सके
दर्द मिले ऐसे की बताया ना जा सके
इस ज़ुबानी फ़र्क़ की इम्तेहान में
खुद को बचाया ना जा सके
लिखा है कुछ तो मगर क्या
लिखे ऐसे की जनाया ना जा सके
शोर इतना हो चूका था
चाहकर भी छुपाया ना जा सके
मेरे नाम के आगे ‘शायर’ मत लिखना
इन् हाथों से हो सकता है मिटाया ना जा सके
अदब की दुनिया में काला निसान है ‘अनंत’
क़ाबिल-ए-नफरत के सिवा कुछ कमाया ना जा सके
शायर: स्वामी ध्यान अनंता