
गुरुर
( Gurur )
किताबें सिखाती हों भले
जीने का तरीका जिंदगी मे
पर,परिवार से मिले संस्कार ही
सिखाते हैं सलीका जीवन का…..
सोहबत का असर रहता है साथ उम्रभर
और उसकी गिरफ्त मे कैद
अपनी ही काबिलियत को
पहुंचा नही पाते अंजाम तक..
हुनर का सुरूर हो जाता है हावी
गुरुर मे हम आगे बढ़ नही पाते
जहां कर सकते थे फतह किले को
वहीं चार सीढियां भी चढ़ नही पाते…
अकड़ कर देती है खत्म विनम्रता
बदल जाते हैं मायने जिंदगी के
जमीर भुला देता है सलीका जिंदगी का
रह जाते हैं सिमटकर अपने ही दायरे मे..
न मिल पाता है साथ हमसफर का
न बन पाता है हमदर्द कोई
न मिलता है साथ दुआओं का कभी
न हो पाते हैं कामयाब हम उम्रभर…
( मुंबई )