क्या दिल में बसा जग को दिखा क्यूं नहीं देते
( Kya Dil Mein Basa Jag Ko Dikha Kyon Nahi Dete )
क्या दिल में बसा जग को दिखा क्यूं नहीं देते।
जज्बात बयां करके बता क्यूं नहीं देते।।
सर सामने इसके झुका भी दो सभी यारो।
तुम शान तिरंगे की बढा क्यों नहीं देते।।
दिन-रात सँवारो इसे जन्नत की तरह तुम।
तकदीर वतन की यूं बना क्यों नहीं देते।।
तस्वीर की मांनिद इसे इस दिल में बसा लो।
सर देश की माटी को नवां क्यूं नहीं देते।।
जो आंख दिखाए उसे बंदूक दिखाओ।
अरमान सभी उसके मिटा क्यूं नहीं देते।।
फिर सामने आए नहीं दुश्मन कभी “कुमार”।
सर उसका कुचल करके सजा क्यूं नहीं देते।।
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