माँ के लाल
( Maan Ke laal )
पुकारती है भारती, उठो ना माँ के लाल अब।
नराधमों के काल बन, उठो ना माँ के लाल अब।
जो रूक गए थमें जो तुम,तो होगा फिर विनाश अब।
कटेगा फिर से अंग रंग, पापीयों का देख ढंग।
जो सीखना है जानना है, तो पढो इतिहास को।
काल के कपाल को, भारत के इस समाज को।
फूलों की विविधता लिए, उधान ये विशाल है।
नराधमों की दृष्टि में, शोधन यहाँ अपार है।
तू प्रेम का सम्मान कर, मन मे धरा सा धीर भर।
अपमान का प्रतिकार कर,विश्वास पर विश्वास रख।
पर याद रख विश्वास का, खण्डन हुआ हर बार है।
माँ भारती के अंग का, दोहन हुआ हर बार है।
इस बार ऐसा ना हो फिर, पद दलन हो जाए कही।
हुंकार ले अब सिंह सा, माँ भारती के लाल अब।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )