मंजिल
( Manzil )
लक्ष्य साध कर चलने वाले मंजिलों के पार हुए।
मिल गई सफलता उन्हें विजय वही हर बार हुए।
मंजिलों की ओर बढ़ते विघ्न बाधाओं को चूमकर।
हौसलों की भरते उड़ाने अपनी मस्ती में झूमकर।
मंजिलें भी है वहीं पर रास्ते भी अपनी जगह।
चल पड़ा मुसाफिर मुकाम की होकर वजह।
आंधी तूफानों को सहकर अनवरत चलता जाता।
दुर्गम पथ पथरीली राहे धीरज मंत्र पढ़ता जाता।
धीर वीर सफर में आगे कीर्तिमान गढ़ जाते वो।
विजय पताका जग लहराये मंजिलों को पाते वो।
मंजिलें भी मिलती उन्हे मेहनत जिनका गहना है।
सत्य शील आभूषण संस्कारों का अंबर पहना है।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )