नवीन आशाएं
( Naveen Aashayein )
बनो चांद तुम नील गगन के,
दिनकर के हित ग्रहण न बनना।
पुष्प बनो वीरों के पथ के,
कांटे बन पग में मत चुभना।।
हो इंसान, हृदय के स्वामी,
मर्म व्यथा इंसान की समझो।।
मानस। पुत्र विधाता के हो,
वसुधा हित अभिशाप न बनना।।
दया दृष्टि रखो जन जन पर तुम,
निर्दय बनके प्रहार न करना।।
ताप हरो शीतल जल बनके,
जल विप्लव से विनाश न करना।।
आज जरूरत इस धरती को,
मानव की भगवान न बनना।।
पाप कर्म में डूबा जग यह,
बनो प्रकाश तमस न बनना।।
अपनों को अपने भूलें है,
रिश्तों हित तलवार न बनना।।
राह भटक रही प्रकृति यहां पर,
तुम मन का भटकाव न करना।।
लक्ष्य नियत करो केवल ख़ुद का,
दूजो हित दृष्टांत तुम बनना।।
रचना – सीमा मिश्रा ( शिक्षिका व कवयित्री )
स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार
उ.प्रा. वि.काजीखेड़ा, खजुहा, फतेहपुर
यह भी पढ़ें :
Nari jeevan kavita || Hindi Poetry On Life | Hindi Kavita -नारी जीवन