Ghazal | आपके ही गॉंव में,कब से नदी इक ठहरी है

आपके ही गॉंव में,कब से नदी इक ठहरी है ( Aap Ke Hi Gaon Me Kub Se Nadi Ek Thahri Hai )     आपके ही गॉंव में,कब से नदी इक ठहरी है। और नीचे बस्तियों में,जल की अफ़रा-तफ़री है।   जो विमानों से शहर की, दूरियों को मापते हैं, उनको क्या मालूम कैसी,जेठ की … Continue reading Ghazal | आपके ही गॉंव में,कब से नदी इक ठहरी है