अजनबी बन के | Ajnabi Ban ke

अजनबी बन के ( Ajnabi ban ke ) शाइरी तेरी लगे मख़मली कोंपल की तरहकूकती बज़्म में दिन रात ये कोयल की तरह अजनबी बन के चुराई है नज़र जब वो मिलेमुझको उम्मीद थी लगते वो गले कल की तरह ख्वाहिशें दफ़्न हैं साज़िश है बदनसीबी भीज़ीस्त वीरान हुई आज है मक़्तल की तरह मुस्तक़िल … Continue reading अजनबी बन के | Ajnabi Ban ke