तृष्णा आकांक्षाओं का सागर | Akanksha par kavita

तृष्णा आकांक्षाओं का सागर ( Trishna akankshaon ke sagar )    कामनाओं का ज्वार सा उठने लगा आकांक्षाओं का सागर ले रहा हिलोरे अभिलाषा विस्तार लेने लगी प्रतिफल मन की तृष्णा होने जो खत्म नहीं होती   कुछ पा लेने की इच्छा जैसे जागी कुछ करके समझने लगे बड़भागी तमन्नायें हंसी ख्वाब सा देखने लगी … Continue reading तृष्णा आकांक्षाओं का सागर | Akanksha par kavita