अमराई बौराई

अमराई बौराई   पीपल के पात झरे पलाश गये फूल। अब भी न आये वे क्या गये हैं भूल। गेंदे की कली कली आतप से झुलसी, पानी नित मांग रही आंगन की तुलसी, अमराई बौराई फली लगी बबूल। पीपल के पात झरे पलाश रहे फूल। काटे नहीं रात कटे गिन गिन कर तारे, कोयलिया कूक … Continue reading अमराई बौराई