अनुभूति | Anubhooti

अनुभूति ( Anubhooti )   निशा थी नीरव था आकाश नयन कब से अलसाये थे। जान कर सोता हुआ मुझे चले सपनों में आये थे। हुई जो कुछ भी तुमसे बात, उसे कब जान सकी थी रात, गया था सारी सुधबुध भूल हृदय को इतना भाये थे। रहे थे जो अनगाये गीत तुम्हें अर्पित कर … Continue reading अनुभूति | Anubhooti