बात जब भी चली मुहब्बत की

बात जब भी चली मुहब्बत की बात जब भी चली मुहब्बत कीदास्ताँ फिर लिखी मुहब्बत की नफ़रतों का अँधेरा छाया हैकर दो तुम रौशनी मुहब्बत की रूह से रूह को ही निसबत हैये है पाकीज़गी मुहब्बत की तंज़ कसता है तो ज़माना कसेहम करें शायरी मुहब्बत की रोज़े अव्वल से आज तक हमनेदेखी दीवानगी मुहब्बत … Continue reading बात जब भी चली मुहब्बत की