बेचारे मजदूर | Bechare Mazdoor
बेचारे मजदूर ( Bechare Mazdoor ) उजड़ी हुई दुनिया मजदूर बसाते हैं, अपने पसीने से जहां सजाते हैं। गगनचुंबी इमारतें बनाते हैं देखो, मरुस्थल में फूल यही तो खिलाते हैं। ईंट,पत्थर, सरिया के होते हैं ये बने, यही तो बंगलों में उजाला फैलाते हैं। ऐसा राष्ट्र-धन लोग कुचलते मनमाना, ओढ़ते आसमां, ये धरती बिछाते हैं। … Continue reading बेचारे मजदूर | Bechare Mazdoor
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