भटक रहा बंजारा सा मन | Bhatak Raha Banjara sa Man

भटक रहा बंजारा सा मन ( Bhatak raha banjara sa man )   आहत इतना कर डाला है, तन-मन मेरा, गुलाबों ने, कांटों के इस मौसम में हम, क्या फूलों की बात करें। सूरज आग उगलता रहता, विद्रोही हो गईं हवाएं। परछाईं भी साथ छोड़ दे, तो फिर गीत कौन हम गायें। जिसने इतना दर्द … Continue reading भटक रहा बंजारा सा मन | Bhatak Raha Banjara sa Man