बिठाये पहरे हैं | Bithaye Pahre Hain
बिठाये पहरे हैं ( Bithaye Pahre Hain ) दर पे मुर्शिद बिठाये पहरे हैंइन के सर पर भी अब तो ख़तरे हैं दाग़ दामन पे लाख हों इनकेफिर भी उजले सभी से चेहरे हैं जब्र करता है इसलिए जाबिरलोग गूंगे हैं और बहरे हैं तुम भी दिल में हमारे बस जाओइसमें कितने ही लोग ठहरे … Continue reading बिठाये पहरे हैं | Bithaye Pahre Hain
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