दलित की यथार्थ वेदनाविदा

दलित की यथार्थ वेदनाविदा घर की खिन्नता को मिटाऊँ,या समाज की उन्नति जताऊँ lक्यूँ भूल गए है हम ,एक डाल के फूल है हम lक्लेश से व्याकुलता तक ,साहित्य से समाज तक lदलित की गति अम्बेडकर जी है ,तो दलित की यति वाल्मीकि जी है l न भूलूँ गत अनुभव ,न छोडूँ अस्त भव lसाँझा … Continue reading दलित की यथार्थ वेदनाविदा