दरख़्त कुल्हाड़ी | Kavita

दरख़्त कुल्हाड़ी ( Darakht kulhari )     बूढ़ा दरख़्त बोल पड़ा कुल्हाड़ी कहर बहुत ढहाती बिन लकड़ी के तू भी व्यर्थ चोट नहीं पहुंचा पाती   जिस लोहे की बनी हुई वह भी तो चोटे सहता है अपना ही जब चोट करें तो दर्द भयंकर रहता है   बिन हत्थे के तू कुल्हाड़ी चल … Continue reading दरख़्त कुल्हाड़ी | Kavita