दीप | Deep

दीप ( Deep )    न सही विश्वास मेरा, पूछ ले उस दीप से। जो रात सारी रहा जलता, साथ मेरे बन प्रतिबम्ब।। हाल सारा जायेगा कह, दीप वह जो बुझ गया। जगने का सबब मेरा, और जलने के मजा।। मांगतीं विश्वास का बल, देख ले इक नजर भर। बस वही लेकर मैं संबल, जलती … Continue reading दीप | Deep