उठ जाग मुसाफिर भोर भई | Geet uth jaag musafir

उठ जाग मुसाफिर भोर भई ( Uth jaag musafir bhor bhai )    चार दिन की चांदनी है, दो दिन का मेला है। झूठी जग की माया है, झुठा हर झमेला है। मन की आंखें खोल प्राणी, मत पाल तमन्नायें नई। उठ जाग मुसाफिर भोर भई, उठ जाग मुसाफिर भोर भई।   खाली हाथ आया … Continue reading उठ जाग मुसाफिर भोर भई | Geet uth jaag musafir