बे हया फ़िर शबाब क्यों उतरे | Ghazal be haya

बे हया फ़िर शबाब क्यों उतरे ( Be haya phir shabab kyon utre )     बे हया फ़िर  शबाब क्यों उतरे शक्ल से ही हिजाब क्यों उतरे   जब जुबां है अदब भरी हर पल बेहया पर ज़नाब क्यों उतरे   है मना बिन हिजाब  के रहना फ़िर बे पर्दा गुलाब क्यों उतरे   … Continue reading बे हया फ़िर शबाब क्यों उतरे | Ghazal be haya