बिखर न जाऊँ | Ghazal Bikhar na Jaoon
बिखर न जाऊँ ( Bikhar na Jaun ) तेरा फ़िराक़ है इक मौजे जाँसितां की तरह बिखर न जाऊँ कहीं गर्दे-कारवां की तरह न डस लें मुझको ये तारीक़ियाँ ये सन्नाटे उजाला बन के चले आओ कहकशां की तरह मेरे फ़साने में रंगीनियां ही हैं इतनी सुना रहे हैं इसे लोग दास्तां की तरह … Continue reading बिखर न जाऊँ | Ghazal Bikhar na Jaoon
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