हम हैं ( Hum Hain ) नज़र शल है,जिगर ज़ख़्मी है फिर भी ख़ंदाज़न हम हैं। न जाने किस लिए उनकी मुह़ब्बत में मगन हम हैं। हमारे नाम से मनसूब है हर एक जंग-ए-ह़क़। मिसालें जिनकी क़ायम हैं वही लख़्त-ए-ह़सन हम हैं। तनाफ़ुर के अंधेरों को मिटाने की ख़ता क्या की। फ़क़त इस जुर्म पर … Continue reading हम हैं | Ghazal Hum Hain
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