निगाहें मिलाकर | Ghazal Nigahen Mila Kar

निगाहें मिलाकर ( Nigahen Mila Kar )   देखों ना सनम तुम यूँ नज़रे घुमाकर करों ना सितम यूँ निगाहें मिलाकर ! करोगी कत्ल तुम कई आशिको का, ये जलवें हसीं यार उनको दिखाकर ! घटाओं सी जुल्फ़े बनाती है कैदी, करोगी हमें क्या कैदी तुम बनाकर ! ज़रा सा ये दिल है इसे बख़्श … Continue reading निगाहें मिलाकर | Ghazal Nigahen Mila Kar