पगडंडियाँ | Ghazal Pagdandiya

पगडंडियाँ ( Pagdandiya )   जिनके पांव जिंदगी के पगडंडियों पर नहीं चलते राहें राजमहल का ख्वाब सब्जबाग जैसा उन्हें दिखता जिनके सपने धरा की धूलों को नहीं फांकते साकार नामुमकिन सा उन्हें हो जाता है जिन्दगानी में समर की इबारत न लिखी जरा सुहाने सफर की कल्पना थोती रह जाती है मुस्कान की अरमान … Continue reading पगडंडियाँ | Ghazal Pagdandiya