परेशाँ | Ghazal preshan

परेशाँ ही इसलिए ये दिमाग़ है मेरा ( Pareshan hi isliye ye dimag hai mera )     परेशाँ  ही  इसलिए  ये  दिमाग़ है मेरा ख़ुशी के पल जिंदगी सें फराग़ है मेरा   भुलानें को कैसे पीऊं शराब ए यारों कहीं खोया देखिए वो अयाग़ है मेरा   अंधेरे है ग़म भरे ही नसीब … Continue reading परेशाँ | Ghazal preshan