गूंगी शामें | Goongi shaamen | Kavita
गूंगी शामें ( Goongi shaamen ) जाने कैसा आलम छाया खामोशी घर घर छाई है मोबाइल में मस्त सभी अब कहां प्रीत पुरवाई है गूंगी शामें सन्नाटा लेकर करती निशा का इंतजार फुर्सत नहीं लोगों को घर में कर लें सुलह विचार अब कहां महफिले सजती रंगीन शामें रही कहां संगीत सुरों … Continue reading गूंगी शामें | Goongi shaamen | Kavita
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