गुस्ताखी | Gustakhi

गुस्ताखी ( Gustakhi )    कलियों के भीतर यूं ही , आ नही जाती महक समूचे तने को ही , जमीं से अर्क खींचना होता है चंद सीढ़ियों की चढ़ाई से ही, ऊंचाई नही मिलती अनुभवों के दौर से गुजर कर ही, सीखना होता है सहयोग के अभाव मे कभी, मंजिल नही मिलती अकेले के … Continue reading गुस्ताखी | Gustakhi