‘वाचाल’ की हरियाणवी कुंड़लियाँ
‘वाचाल’ की हरियाणवी कुंड़लियाँ तड़कै म्हारे खेत में, घुस बेठ्या इक साँड़।मक्का अर खरबूज की, फसल बणा दी राँड़।।फसल बणा दी राँड़, साँड़ नै कौण भगावै।खुरी खोद कै डुस्ट, भाज मारण नै आवै।।फुफकारै बेढ़ाल़ भगावणिये पै भड़कै,घुस्या मरखणा साँड़ खेत में तड़कै-तड़कै।। बहुअड़ बोल्ली जेठ तै, लम्बा घूंघट काढ़।दीदे क्यूँ मटकावता, मुँह में दाँत न … Continue reading ‘वाचाल’ की हरियाणवी कुंड़लियाँ
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