जब जंगल रोए

जब जंगल रोए – कांचा गचीबोवली की पुकार ( दिकुप्रेमी की कलम से ) कुछ आवाज़ें मौन होती हैं,जैसे टूटी टहनियों की टीस,जैसे मिट्टी से उखड़ते पेड़ों की कराहजिन्हें कोई सुनना नहीं चाहता। तेलंगाना के कांचा गचीबोवली वन क्षेत्र मेंविकास की आड़ मेंविनाश का वाक्य लिखा गया।जहाँ कभी हवाओं की सरसराहटकवियों को गीत देती थी,वहाँ … Continue reading जब जंगल रोए