जम्हूरा मन वर्षों का विश्वास तोड़कर,चलता बना जम्हूरा मन।अब तक मुझे कचोट रहा है,मेरा यही अधूरापन। धड़कन तार-तार हो जाती,सपना दिन में तारे सा,साँस गटरगूँ करता रहता,अपना बिना सहारे सा।बनी ज़िन्दगी ढोल-नगाड़ा,बाजे ख़ूब तम्बूरा मन। आओ और उड़ाओ खिल्ली,मेरे एकाकीपन की।चिन्दी-चिन्दी छीन-झपट लो,बेढ़ंगे जर्जर तन की।ओखलिया में कूट-कूट कर,बना लिया है चूरा मन। जाने कैसी … Continue reading जम्हूरा मन
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