जाऊँ क्यों मैं घूमने

जाऊँ क्यों मैं घूमने ( कुण्डलिया ) जाऊँ क्यों मैं घूमने, सारे तीरथ धाम।कण-कण में हैं जब बसे, मेरे प्रभु श्री राम। मेरे प्रभु श्री राम, बहुत हैं मन के भोले।खाये जूठे बेर, बिना शबरी से बोले। सच्ची हो जो प्रीत, हृदय में तुमको पाऊँ।तुम्हें ढूंढने और, कहीं मैं क्यों कर जाऊँ। डाॅ ममता सिंहमुरादाबाद … Continue reading जाऊँ क्यों मैं घूमने