क़रीब से ऐसे मेरे निकल रहा है वो | Ghazal

क़रीब से ऐसे मेरे निकल रहा है वो ( Kareeb se aise mere nikal raha hai wo )     क़रीब  से ऐसे मेरे निकल रहा है वो हूँ गैर जैसे आँखों को बदल रहा है वो   उसे भेजा था मुहब्बत वफ़ा भरा कल गुल उल्फ़त का पैरो लते गुल मसल रहा है वो … Continue reading क़रीब से ऐसे मेरे निकल रहा है वो | Ghazal