चाँद का दीदार | Karva chauth ki kavita
चाँद का दीदार! ( Chaand ka deedar ) बाँहों में बीते उनके सारी उमर ये खंजन की जैसी नहीं हटती नजर ये। जिधर देखती हूँ बहार ही बहार है पति मेरे जीवन का देखो आधार है। सोलह श्रृंगार करती नित्य उनके लिए मैं आज करवा की व्रत हूँ ये उनके लिए मैं। वो … Continue reading चाँद का दीदार | Karva chauth ki kavita
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