Agnisuta par Kavita | अग्निसुता

अग्निसुता ( Agnisuta )   द्रौपदी  ने  खोले  थे  केशु, जटा अब ना बांधूंगी। जटा पर दुःशासन का रक्त, भीगों लू तब बाधूंगी। मेरे प्रतिशोध की ज्वाला से,जल करके नही बचेगे, मै कौरव कुल का नाश करूगी, केशु तभी बाधूंगी।   धरा पर नारी को कब तक सहना,अपमान बताओं। पुरूष की भरी सभा मे,द्रोपदी की … Continue reading Agnisuta par Kavita | अग्निसुता