अपनापन | Kavita Apnapan

अपनापन ( Apnapan ) सफर करते-करते कभी थकती नहीं, रिश्ता निभाने का रस्म कभी भूलती नहीं, कभी यहाँ कभी वहाँ आनातुर, कभी मूर्खता कभी लगता चातुर्य, समझ से परे समझ है टनाटन, हर हालत में निभाते अपनापन, किसी को नहीं मोहलत रिश्तों के लिए, कोई जान दे दिया फरिश्तों के लिए, कोई खुशी से मिला,कोई … Continue reading अपनापन | Kavita Apnapan