दर्पण ना समाए | Kavita Darpan na Samaye

दर्पण ना समाए  ( Darpan na Samaye ) रुप तेरा ऐसा दर्पण ना समाए मन ना उतराए भृकुटी ऐसी चांदनी चांद ना शरमाय गाल ऐसी लागी कनक ना चमकाय ओठ ऐसी रंगाय भौंरें ना गूंजाय बाला कानें लटकाए चंद्रमुखी सा इतराय हथेली ऐसी जुडाय सूर्यमुखी नमो कराए गेसू ऐसी लहलहाय सौंदर्य प्रकृति बरसाए। शेखर कुमार … Continue reading दर्पण ना समाए | Kavita Darpan na Samaye