दुनिया का घाव | Kavita Duniya ka Ghaav

दुनिया का घाव! ( Duniya ka ghaav )   दुनिया का घाव सुखाने चला हूँ, बुझता चराग मैं जलाने चला हूँ। बच्चों के जैसा शहर क्यों हँसें न, कोई मिसाइल जमीं पे फटे न। आँखों में आँसू क्यों कोई लाए, खोती चमक मैं बढ़ाने चला हूँ। बुझता चराग मैं जलाने चला हूँ, दुनिया का घाव … Continue reading दुनिया का घाव | Kavita Duniya ka Ghaav