Kavita | गुनाह

गुनाह ( Gunaah )   सद्भावों की पावन गंगा सबके   मन  को भाए वाणी के तीखे बाणों से कोई घायल ना हो जाए   प्रेम के मोती रहा लुटाता खता   यही    संसार  में कदम बढ़ाता फूंक फूंक कर कहीं  गुनाह  ना  हो जाए   कोई अपना रूठ ना जाए रिश्तो   के   बाजार   में घूम … Continue reading Kavita | गुनाह