आई फिर जनता की बारी | Kavita Janta ki Bari

आई फिर जनता की बारी   आने लगे नेता पारापारी, कि आई फिर जनता की बारी। बढ़ी गइल कितनी बेकारी, महंग भइल दाल -तरकारी। बगुला भगत बनि-बनि जइसे आए, वोटवा की खातिर वो दामन बिछाए। घूमें जइसे कोई शिकारी, कि आई फिर जनता की बारी। आने लगे नेता पारापारी, कि आई फिर जनता की बारी। … Continue reading आई फिर जनता की बारी | Kavita Janta ki Bari