मैं अकेला ( Main Akela ) अकेला हूँ पर अकेला नहीं मेरे साथ है तारो भरी रात चाँद की चाँदनी मुहँ पर आई झुर्रियां माथे पर पड़ी सकीन एक सुनसान रात में जब बिस्तर पर होता हूँ। घड़ी की सुईयों की आवाज भयभीत कर देती है मुझे झाड़ियों की झुण्ड की छाँव आवारा पशुओं की … Continue reading मैं अकेला | Kavita Main Akela
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