मेरे मन का दर्पण | Kavita Mere Man ka Darpan

मेरे मन का दर्पण ( Mere Man ka Darpan ) मेरे मन के दर्पण मे तस्वीर तुम्हारी है कान्हा, प्रतिपल देखा करती हूं तस्वीर तुम्हारी अय कान्हा, खोली ऑखें तुझको पाया मूॅदी ऑख तुझे ही, कितना भी देखूं तुझको न ऑखों की प्यास बुझेगी, इकदिन सम्मुख दरसन दोगे सोच रही हूं मै कान्हा, प्रतिपल देखा … Continue reading मेरे मन का दर्पण | Kavita Mere Man ka Darpan