नारी व्यथा ( Nari Vyatha ) मेरे हिस्से की धूप तब खिली ना थी मैं भोर बेला से व्यवस्था में उलझी थी हर दिन सुनती एक जुमला जुरूरी सा ‘कुछ करती क्यूं नहीं तुम’ कभी सब के लिए फुलके गर्म नरम की वेदी पर कसे जाते शीशु देखभाल को भी वक्त दिये जाते … Continue reading Kavita | नारी व्यथा
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