प्रतिशोध | Kavita pratisodh

प्रतिशोध ( Pratisodh )   प्रतिशोध की उठती ज्वाला जब अंगारे जलते हैं सर पर कफ़न बांधे वीर लड़ने समर निकलते हैं   जब बदले की भावना अंतर्मन में लग जाती है तन बदन में आग लगे भृकुटियां तन जाती है   तीखे बाण चले वाणी के नैनों से ज्वाला दहके प्रतिशोध की अग्नि में … Continue reading प्रतिशोध | Kavita pratisodh