समय के संग कैसे दौड़ू | Kavita Samay ke Sang
समय के संग कैसे दौड़ू ( Samay ke sang kaise daudoon ) वक्त निकला जा रहा तीव्र गति के साथ समय संग कैसे दौड़ू बोलो हे मेरे नाथ शनै शनै यूं बीत रहे पल प्रतिपल दिन रात कालचक्र भी घूम रहा है बदल रहे हालात नियति खेल निराले भांडा अभाग्य कैसे फोडूं … Continue reading समय के संग कैसे दौड़ू | Kavita Samay ke Sang
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