स्मृतियाँ | Kavita Smritiyan

स्मृतियाँ ( Smritiyan ) स्मृतियों के घने बादल फिर से घिरकर आयें हैं सांध्य आकाश में सांध्य बेला में तारे छिप रहें हैं कभी तों कभी झिलमिला रहें हैं स्मृतियों के घने बादल फिर से घिर रहें हैं घनघोर होगीं फिर वर्षा आसार नजर आ रहें हैं पग चिन्ह हैं तुम्हारे जानें के जो लौटकर … Continue reading स्मृतियाँ | Kavita Smritiyan