सूने घर राह देखते अपनों की | Kavita soone ghar

सूने घर राह देखते अपनों की ( Soone ghar rah dekhte apno ki )   सूनी पड़ी हवेलियां अब जर्जर सी हुई वीरान राह देखती अपनों की सब गलियां सुनसान   वो भी क्या लोग सब दरियादिली में जीते थे ठाठ बाट शान निराली घूंट जहर का पीते थे   दो पैसे ना सही मन … Continue reading सूने घर राह देखते अपनों की | Kavita soone ghar