अच्छी नहीं होती खामोशी | Khamoshi
अच्छी नहीं होती खामोशी ( Achi nahi hoti khamoshi ) चुप्पी साधे क्यों बैठे हो, गायब क्यों सारी गर्मजोशी। विद्वानों की सभा भरी, अच्छी नहीं लगती खामोशी। कहां गए वक्तव्य सुहाने, कहां वो कहानी नई नई। गीतों की रसधार कहां वो, मधुरम बातें कहां गई। मौन साधने वालों सुन लो, बाधाओं व्यवधानों सुन लो। … Continue reading अच्छी नहीं होती खामोशी | Khamoshi
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